अमेरिका और भारत के बीच मजबूत होती साझेदारी अगर किसी देश के लिए मुसीबत बन रही है, तो वह है चीन। दोनों देशों के बीच इस साझेदारी का मकसद चीन की बढ़ती आक्रामकता पर लगाम लगाना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का स्वागत हुआ और अब 22 जून को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के साथ उनकी द्विपक्षीय मुलाकात होगी। दोनों देशों की तरफ से यूं तो कई बार साझा बयान जारी किए गए हैं। लेकिन कभी सीधे तौर पर चीन का नाम नहीं लिया गया है। मगर कई विशेषज्ञ मान रहे हैं कि व्हाइट हाउस में गुरुवार को होने वाली मुलाकात के बाद हो सकता है कि दोनों नेताओं की तरफ से जो बयान हो, उसमें चीन का जिक्र हो।
हाल के कुछ वर्षों में चीन वह देश बनकर सामने आया है जिसने भारत के सबसे बड़े खतरे के तौर पर पाकिस्तान की जगह ले ली है। भारत की तरफ से अक्सर उन विवादों को तूल देने की कोशिश नहीं की गई है जिसकी वजह से चीन के साथ टकराव बढ़ लेकिन फिर भी चीन अक्सर सीमा पर उकसावे की कार्रवाई को अंजाम देता रहा है। चीन के साथ बीच दशकों की तनातनी के बाद उन रणनीतिक हितों को जगह मिली है जो अमेरिका और भारत से जुड़े हैं। पीएम मोदी की यात्रा के दौरान ही बाइडन ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को तानाशाह करार दे दिया। मोदी की यात्रा से पहले अमेरिकी विदेश मंत्री एंटोनी ब्लिंकन चीन पहुंच गए।
न तो बाइडन और न ही मोदी भागीदारी मुख्य तौर पर चीन की चुनौती से निपटने के रूप में पेश करेंगे। मगर अधिकारियों की मानें तो भारत एक उभरती हुई शक्ति है और दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। ऐसे में उसके साथ मिलकर साझा हितों को मजबूत करने के बारे में बाइडन विस्तार से चर्चा कर सकते हैं। बाइडन के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) जेक सुलिवन ने कहा था, ‘ पीएम मोदी की यात्रा चीन के बारे में नहीं है।लेकिन सैन्य क्षेत्र, प्रौद्योगिकी क्षेत्र, आर्थिक क्षेत्र में चीन की भूमिका का सवाल एजेंडे में होगा।’
भारत के साथ बड़ी डील
यूएस इंस्टीट्यूट ऑफ पीस के एक सीनियर समीर लालवानी ने वॉशिंगटन पोस्ट से कहा, ‘यह बहुत ही संवेदनशील टेक्नोलॉजी है जिसकी मांग भारत करीब दो दशकों से कर रहा है। अगर यह डील सफल होती है तो भविष्य में जेट इंजनों की कई वर्जन तैयार हो सकते हैं। अमेरिका के लिए आने वाले 20 से 30 साल भारत के रक्षा उद्योग में भागीदार बनने और उसे आकार देने का एक तरीका है।