LG ने बिना मंत्रिपरिषद की सलाह के MCD में नियुक्त कर दिए 10 सदस्य

दिल्ली सरकार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में होगी सुनवाई

दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार और एलजी वीके सक्सेना के बीच एक बार फिर सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। आम आदमी पार्टी का आरोप है कि एलजी वीके सक्सेना ने बिना मंत्रीपरिषद की सलाह के एमसीडी में 10 सदस्य नियुक्त कर दिए हैं। यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। जिसपर चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली बेंच सुनवाई करेगी।

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार की याचिका पर एलजी ऑफिस को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। आम आदमी पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार ने एलजी की ओर से एमसीडी में मनोनीत पार्षद यानी एल्डरमैन की नियुक्ति को चुनौती दी है । दिल्ली सरकार का प्रतिनिधित्व सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी और एडवोकेट सदान फरासत ने किया। उन्होंने बुधवार को सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच के सामने याचिका पर दलीलें रखीं। मामले में अगली सुनवाई 10 अप्रैल को होगी।

दिल्ली सरकार ने याचिका में कहा है कि 1991 में अनुच्छेद-239एए के प्रभाव में आने के बाद से यह पहली बार है कि चुनी हुई सरकार को पूरी तरह से दरकिनार करते हुए एलजी ने इस तरह का नामांकन किया है। दावा किया कि इससे एक अनिर्वाचित ऑफिस को ऐसी शक्ति का अधिकार मिल गया है, जो विधिवत निर्वाचित सरकार से जुड़ी है। दिल्ली सरकार ने 3 और 4 जनवरी, 2023 के आदेशों और अधिसूचनाओं को रद्द करने की मांग की, जिसके तहत एलजी ने एमसीडी में 10 नामित सदस्यों को अपनी पहल पर नियुक्त किया। इसके लिए दिल्ली के मंत्रिपरिषद से न कोई सहायता ली गई और न सलाह। ऐसा दावा करते हुए याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि न तो कोई धारा और न ही कानून का कोई अन्य प्रावधान कहीं भी कहता है कि इस तरह का नामांकन प्रशासक द्वारा अपने विवेक से किया जाना है।

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