Dillinews7 – IT law एक्सपर्ट पवन दुग्गल बोले- 2021 में ये रूल 2011 की मानसिकता बताते हैं

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केंद्र सरकार ने गुरुवार को सोशल मीडिया, OTT प्लेटफॉर्म और डिजिटल न्यूज के लिए गाइडलाइन जारी की। कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि सोशल मीडिया पर अगर कोई गलत कंटेंट डाला जाता है तो उसे 24 घंटे के भीतर हटाना होगा। सूचना और प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने OTT और डिजिटल न्यूज पोर्टल्स के बारे में कहा कि उनके यहां खुद को नियंत्रित करने की व्यवस्था हो।

dainikbhaskar ने नई गाइडलाइन के बारे में IT law एक्सपर्ट पवन दुग्गल से बातचीत की। दुग्गल कहते हैं- ये रूल्स सही दिशा में सही कदम जरूर हैं, लेकिन वास्तव में क्या कहा गया है इसके लिए हमें थोड़ा इंतजार करना पड़ेगा। इसका अध्ययन करना पड़ेगा, ताकि हम यह समझ सकें कि इसका असर क्या पड़ेगा। पहल अच्छी है, लेकिन लगता है कि अब भी 2021 में ये रूल 2011 की मानसिकता को प्रदर्शित करते हैं। 2011 के रूल्स में कहा गया था कि कंटेंट को 36 घंटे में रिमूव करो। वही गाइडलाइन 2021 में आ जाती है, जबकि जमीनी हकीकत बिल्कुल बदल चुकी हैं। जमीनी हकीकत यह है कि आज 36 घंटे की टाइमलाइन कोई मायने नहीं रखती। मान लीजिए कोई आपकी मानहानि कर रहा है तो वो 36 घंटे तक आपकी मानहानि करता रहेगा। आपकी रेप्यूटेशन को नुकसान पहुंचाता रहेगा। इसके बाद अगर वो कंटेंट हटा भी दिया गया तो उसका कोई औचित्य नहीं है।

सर्विस प्रोवाइडर की मनमानी पर सरकार सख्त
ये वो कहानी है जैसे सोता हुआ कुंभकरण जब उठता है तो वो अपने साथ कई लोगों को लपेट लेता है। कहीं न कहीं, सर्विस प्रोवाइडर भी बहुत मनमानी कर रहे थे, भारत सरकार को ललकार रहे थे कि हम नहीं करते कानून का पालन, आप क्या कर लेंगे। अब सरकार ने एक ही झाड़ू फेरकर तमाम सर्विस प्रोवाइडर और OTT प्लेटफॉर्म को अपने शिकंजे में ले लिया है। कानूनी धाराओं में इन्हें कवर कर लिया है।

यूजर्स के लिए क्या बदलेगा
अगर आप सोच रहे हैं कि कोई जादू की छड़ी हाथ में आ जाएगी, तो ऐसा नहीं है। हां, ये जरूर है कि उनकी पीड़ा कुछ कम होगी, अगर सर्विस प्रोवाइडर्स कानूनों को मानेंगे। एक बात तो ये ही है कि अगर कोई किसी की न्यूड या अश्लील तस्वीर पब्लिश करता है तो इसे 24 घंटे में हटाना पड़ेगा। लेकिन, इस दौरान कहां-कहां इसका इस्तेमाल हो चुका होगा, इसका आप अनुमान भी नहीं लगा सकते। ये 3 या 4 घंटे की अवधि होनी चाहिए थी, लेकिन आपने इसे 24 घंटे कर दिया। मुझे लगता है कि अभी भी ये कानून सर्विस प्रोवाइडर्स के लिए काफी सॉफ्ट है। उपभोक्ताओं की तलाश और उम्मीद अब भी पूरी नहीं हुई।

यूजर की लाइफ में इतना ही चेंज आएगा कि पहले जो सर्विस प्रोवाइडर बेलगाम घूमते थे, वे अब इतना बेलगाम नहीं हो पाएंगे। मुझे लगता है कि आने वाले कुछ महीनों में इन कानूनों की चुनौती अदालतों में पहुंचेंगी। क्योंकि अगर ये कानून लागू हो गए तो सर्विस प्रोवाइडर्स के बहुत सारे मॉडल गड़बड़ा जाएंगे। इसलिए मुझे लगता है कि इन कानूनों को चुनौती मिलेगी।

सेल्फ रेगुलेशन आसान नहीं
सरकार जो रूल्स एंड रेगुलेशन्स लेकर आई है। इसे संसद ने पास नहीं किया है, इसलिए अभी एथिक्स शब्द सही है। सेल्फ रेगुलेशन की बात कही गई है। लेकिन, भारत में ये इतने जल्दी नहीं होने वाला। लोगों को जब तक कानून के डंडे की आवाज सुनाई नहीं देगी, तब तक वो इसे मानेंगे नहीं। इसलिए अगर आप ये कहते हैं के सेल्फ रेगुलेट कर लीजिए, तो हो सकता है वो कर भी लें, लेकिन बहुत ज्यादा कामयाबी की उम्मीद नहीं है। सेल्फ रेगुलेशन कई सेक्टर में कामयाब नहीं हो पाया है।

सोशल मीडिया की गंदगी कितनी साफ होगी
अगर आप सोचते हैं कि संपूर्ण परिवर्तन हो जाएगा तो इस तरह की कोई चीज नहीं होने वाली। इंतजार की घड़ियां कुछ कम हो जाएंगी, लेकिन इंतजार उतना ही लंबा है। आपको न्याय मिल पाएगा या नहीं मिल पाएगा, ये व्यक्ति पर भी निर्भर करेगा।

डिजिटल न्यूज प्लेटफॉर्म पर असर
कहीं न कहीं ये रूल्स और रेगुलेशन प्राइमरी लेजिस्लेशन के बियॉन्ड जा रहे हैं और ये उनकी बहुत बड़ी कमजोरी है। नियम ये है कि जो कानून संसद ने पास किया है, रूल्स और रेगुलेशन उसके परे नहीं होने चाहिए। प्राइमरी लेजिस्लेशन IT ACT के सेक्शन 21 की बात करती है। अब ये कई तरह की बात कर रहे हैं। कई तरह की श्रेणियां लाई जा रही हैं। ये आईटी एक्ट के बियॉन्ड जा रहे हैं।

फाइनल वर्डिक्ट

सार की बात करें तो हम कह सकते हैं कि आखिरकार सरकार ने भारतवासियों की बात सुन ली है। सरकार ने ठोस कदम उठाए हैं, हालांकि ये उतने सख्त कदम नहीं हैं, जितने होने चाहिए थे। लेकिन, सरकार ने विदेशी कंपनियों को साफ संकेत दे दिए हैं कि अगर भारत में रहना है, यहां की मलाई खानी है तो आप कानून का पालन किए बगैर आगे नहीं बढ़ सकते।

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