TDS vs TCS: टीसीएस और टीडीएस में क्या अंतर है? ITR फाइल करने से पहले जान लीजिए पूरी डिटेल

आईटीआर दाखिल करने का समय नजदीक आ रहा है। अक्सर लोग टीडीएस (TDS) और टीसीएस (TCS) को लेकर अक्सर कनफ्यूज रहते हैं। कई लोग इन दोनों के बीच फर्क नहीं समझ पाते हैं। यह टैक्स वसूल करने के दो अलग-अलग तरीके हैं। टीडीएस का मतलब होता है टैक्स डिडक्शन ऐट सोर्स जबकि टीसीएस का मतलब टैक्स कलेक्शन ऐट सोर्स होता है। दोनों में ही पैसों के लेन-देन करते समय टैक्स का हिस्सा काट लिया जाता है। यह पैसा सरकार के पास जमा कर दिया जाता है। लेकिन, दोनों में टैक्स भुगतान के तरीके में अंतर होता है। किसी नए व्यक्ति के लिए इस अंतर को समझना आसान नहीं होता है। इन दोनों ही मामलों में रिटर्न फाइल करने की जरूरत होती है। यहां हम आपको डिटेल से इनके बारे में बता रहे हैं .

TDS क्या है?

अगर किसी व्यक्ति को कोई इनकम होती है तो उस इनकम से टैक्स काटकर बाकी रकम दे दी जाती है। इस तरह टैक्स के रूप में काटी गई रकम को टीडीएस कहते हैं। सरकार टीडीएस के जरिए टैक्स जुटाती है। यह अलग-अलग तरह के इनकम सोर्स पर काटा जाता है। इनमें सैलरी, इनवेस्टमेंट पर मिला इंटरेस्ट और कमीशन आदि शामिल हैं। पेमेंट करने वाला संस्थान एक निश्चित रकम टीडीएस के रूप में काटता है। किस तरह के भुगतान पर कितना TDS कटेगा, इसकी घोषणा सरकार हर फाइनेंशियल ईयर के पहले कर देती है। आमदनी के स्रोत पर टैक्स कटौती होने के कारण इसे Tax Deducted at the Source यानी TDS बोला जाता है। इस तरह से टैक्स काटने वाले को Deductor कहा जाता है और जिसका टीडीएस कटता है उसे Deductee कहा जाता है।

टीडीएस का उदाहरण

टीडीएस को एक उदाहरण के जरिए समझते हैं। मान लीजिए आपको 10 लाख रुपये की लॉटरी लगी है। लॉटरी पर जीती गई पूरी रकम पर 30% TDS काटने का नियम है। आपको 10 लाख रुपये का 30% काटकर बाकी रकम ही मिलेगी। यानी आपकी 10 लाख रुपये की लॉटरी में से तीन लाख रुपये TDS के रूप में काट लिए जाएंगे। इस तरह आपको दस लाख रुपये की लॉटरी जीतने पर सात लाख रुपये मिलेंगे। अगर आपको कहीं से प्रोफेशनल फीस मिलती है तो सालाना 30 हजार रुपये या उससे अधिक के भुगतान पर 10 फीसदी टीडीएस काटा जाता है।

TCS क्या है?

TCS टैक्स कलेक्टेड ऐट सोर्स होता है। यानी सोर्स पर एकत्रित टैक्स। यह टैक्स कुछ खास प्रकार की वस्तुओं के सौदे पर लगता है। जैसे शराब, तेंदू पत्ता, इमारती लकड़ी, स्क्रैप, मिनरल्स वगैरह। सामान की कीमत लेते वक्त, उसमें टैक्स का पैसा भी जोड़कर ले लिया जाता है और सरकार के पास जमा कर दिया जाता है। TCS को खरीदार (purchaser) से वसूलने और सरकार के पास जमा करने की जिम्मेदारी उस व्यक्ति की होती है जो कि सामान बेचता है। यानी यह जिम्मेदारी Seller की होती है। कीमत मिलने के स्रोत से टैक्स वसूलने के कारण इसे Tax Collected at the Source यानी TCS कहा जाता है। इनकम टैक्स कानून की धारी 206C (1) के मुताबिक सिर्फ बिजनेस उद्देश्य से कुछ विशेष वस्तुओं की बिक्री पर ही TCS काटने का नियम है। व्यक्तिगत उपभोग के लिए सौदा होने पर यह नहीं लगता है

TCS का उदाहरण

टीसीएस को एक उदाहरण के जरिए समझने की कोशिश करते हैं। माना किसी व्यक्ति ने किसी कंपनी को एक लाख रुपये का स्क्रैप बेचा। स्क्रैप पर एक फीसदी का टीसीएस लेने का नियम है। एक लाख रुपये की एक फीसदी रकम 1000 रुपये है। इस तरह कंपनी से कुल एक लाख एक हजार रुपये लिए जाएंगे। इस तरह वसूले गए 1000 रुपये के TCS को इनकम टैक्स विभाग के पास जमा करना होगा। अलग-अलग चीजों पर इसका रेट अलग-अलग है। मसलन तेंदू पत्ता पर यह सबसे अधिक पांच परसेंट है। शराब या अल्कोहल पर यह 2.5 फीसदी है।

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